क्लोरीन, ब्रोमीन, आयोडीन को फ्लोरीन तथा ऐस्टैटीन के साथ आवर्त सारणी के VIIA उप-समूह में रखा गया है। VIIA के प्रथम चार तत्त्वों (F, CI, Br, I) को हैलोजन कहते हैं। ‘हैलोजन’ शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘हैल्स’ (Hals) तथा ‘जेन्स’ (Genes) से हुई है, जिसका अर्थ है-समुद्री लवण पैदा करने वाला। ये सभी तत्त्वे अपने लवण के रूप में समुद्री जल में पाये जाते हैं। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास इस प्रकार हैं –
इन सभी तत्त्वों के बाहरी कोश में 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं और बाहरी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np5 है तथा भीतर के सभी कोश पूर्ण हैं। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में समानता होने के कारण इनके गुणों में समानता है और उनमें क्रमिक परिवर्तन पाया जाता है।
गुणों में समानता
ये वैद्युत संयोजकता (-1) तथा सह-संयोजकता दोनों ही प्रकट करते हैं।
इनकी वाष्प रंगीन तथा तीक्ष्ण गन्ध वाली होती है।
गैसीय अवस्था में ये द्वि-परमाणुक होते हैं।
सभी प्रारूपिक अधातु हैं।
हाइड्रोजन से सीधा संयोग कर हाइड्रो अम्ल बनाते हैं; जैसे- HCl, HBr, HI
इनकी धातुएँ वाष्प में जलकर हैलाइड बनाती हैं।
- 2Na + Cl2 → 2NaCl
- Mg + Br2 → MgBr2
- Cl2 तथा Br2 जल के साथ क्रिया कर O2 निकालती है।
Cl2, Br2,I2, ऑक्सीकारक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
ये तत्त्व वैद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं।
क्षारों के साथ समान रूप से क्रिया करते हैं।
सभी प्रबल ऑक्सीकारक हैं।
- H2S + Cl2 → 2HCl + *
- SO2 + Cl2 + 2H2O → 2HCl + H2SO4
- सभी अम्लीय ऑक्साइड बनाते हैं।
गुणों में क्रमिक परिवर्तन – परमाणु संरचना तथा गुणों की समानता से स्पष्ट है कि इन तत्त्वों को एक ही समूह में रखना न्यायोचित है। इसके अतिरिक्त तत्त्वों के गुणों में श्रेणीबद्ध परिवर्तन परमाणु क्रमांक के परिवर्तन पर निर्भर करता है तथा किसी समूह में तत्त्वों की विभिन्न स्थानों पर स्थिति का निर्णायक भी है। इन तत्त्वों के गुणों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर श्रेणीबद्ध परिवर्तन इस प्रकार हैं –
तत्त्वों की अवस्था में क्रमिक परिवर्तन होता है; जैसे- क्लोरीन गैस है, ब्रोमीन द्रव तथा आयोडीन ठोस है।
गैसों का रंग गहरा होता जाता है। अत: फ्लोरीन हल्की पीली है, क्लोरीन हरी-पीली, ब्रोमीन लाल-भूरी तथा आयोडीन वाष्प गहरी बैंगनी है।
इनकी क्रियाशीलता घटती है।
इनका ऑक्सीकारक स्वभाव भी घटता है।
क्वथनांक बढ़ते हैं तथा आपेक्षिक ताप घटते हैं।
परमाणु त्रिज्याएँ बढ़ती हैं।
आयनन विभव घटते हैं।
इन तत्त्वों के गुणों में समानता तथा परमाणु क्रमांक में क्रमिक वृद्धि के साथ गुणों में श्रेणीबद्ध परिवर्तन इस बात का निर्णायक है कि ये तत्त्व एक समूह में रखे जाने चाहिए। इनके परमाणुओं के बाहरी कोश की ns2 np5 संरचना सह इंगित करती है कि इनकी सातवें समूह में स्थिति न्यायोचित है।