लैमार्क के अनुसार सर्प झाड़ियों तथा बिलों में रहता है तथा जमीन पर रेंगकर चलता है जिसके कारण उसके पैर इस्तेमाल नहीं होते थे तथा बिल में घुसने में भी बाधा उत्पन्न करते थे इसलिए इनके पैर धीरे-धीरे लुप्त होते चले गये जबकि अन्य सरीसृपों मे पैर उपस्थित होते हैं।
लैमार्क का मानना था कि बत्तख प्रारम्भ में स्थलीय थे जो खाने की खोज में पानी में जाया करते थे। पानी में चलने के लिए उन्हें अपने पंजे फैलाने पड़ते थे। इसके परिणामस्वरूप उनके पंजों के आधार पर त्वचा लगातार खिंचती गयी और पेशीय चलन से पंजों में रुधिर का बहाव बढ़ गया। अतः त्वचा ने अंगुलियों के बीच में पाद जाल का रूप ले लिया।