जैसे-जैसे कर्म क्षीण होता जाता है वैसे-वैसे निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इन्द्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है, क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनाया महल और बिन बोये फल मिलते हैं। बिना कर्म से उन्हें अप्रतिष्ठित होने का डर बना रहता है इसलिए कर्मशील, मेहनती मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या, जलन होने लगती है। ऐसे कामचोर लोग ही निंदक में बदल जाते हैं।