प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘तुम आओ मन के मुग्ध मीत’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति हैं।
संदर्भ : कवि कह रहे हैं कि हे मधुर मीत, तुम देवलोक के आनंद हो। तुम मेरी व्याकुलता को मिटाकर मेरे जीवन में प्रेम भर दो।
स्पष्टीकरण : कवि अपने जीवन के मधुर किरण मीत को याद कर रहे हैं। वे कहते हैं, मैं निराश और अंधकार में डूबा हुआ हूँ। तुम मेरे इस अंधकार भरे जीवन में आशा रूपी प्रकाश का संचार कर दो।
कवि कहते हैं तुम देवलोक के आनंद गीत हो। देवलोक में कभी भी कष्ट, दुःख नहीं आते। वहाँ खुशियां ही खुशियां है। तुम देवलोक की शोभा हो। तुम मेरे जीवन में भी इस आनंद का संचार कर दो। मैं तुम्हारा स्नेह पाने के लिए बेचैन होता जा रहा हूँ। इसलिए हे मन के मुग्ध मीत, तुम आओं और मेरे जीवन में प्रीति भर दो।