जब गिल्लू घायल हुआ तब उस पर रुई से रक्त पोंछकर पेन्सिलिन का मरहम लगाया। गिल्लू को पकडकर एक लंबे लिफाफे में रखती थी महादेवी वर्मा ने गिल्लू को काजू और बिस्कुट खाने को देती थी। वर्माजी ने गिल्लू को मुक्त करना आवश्यक समझकर खिड़की के कीले निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। वर्माजी ने बडी कठिनाई से उसे थाली के पास बैठना सिखाया और एक-एक चावल उठाकर सफाई से खाना सिखाया । तब गिल्लू का अंत नजदीक आया तो उसके पंजे ठंडे हो रहे थे तो हीटर जलाकर उसे उष्णता देने की कोशिश की।