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in Class 12 by kratos

विभवमापी का सिद्धान्त चित्र खींचकर समझाइए। यह वोल्टमीटर से श्रेष्ठ क्यों है?

या

हम सेल का विद्युत वाहक बल नापने के लिए वोल्टमीटर की अपेक्षा विभवमापी को वरीयता क्यों देते हैं।

या

विभवमापी का सिद्धान्त समझाइए। इसकी सुग्राहिता किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है?

या

विभवमापी में प्रयोग किए जाने वाले तार के विशेष गुण लिखिए।

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by kratos
 
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विभवमापी- यह किसी सेल का विद्युत वाहक बल अथवा किसी वैद्युत परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर नापने का यथार्थ उपकरण है।

विभवमापी का सिद्धान्त- इसमें मुख्यत: एक लम्बा व एकसमान व्यास की धातु का प्रतिरोध-तार AB होता है। इसका एक सिरा A एक संचायक-बैटरी के धन-ध्रुव से जुड़ा होता है। बैटरी का ऋण-ध्रुव एक कुंजी (K) तथा एक धारा नियन्त्रक (Rh) के द्वारा सार के दूसरे सिरे B से जोड़ दिया जाता है। धारा नियन्त्रक के द्वारा तार AB में धारा को घटाया अथवा बढ़ाया जा सकता है। E एक सेल है जिसका विद्युत वाहक बल नापना है। इसका धन-ध्रुव तार के A सिरे से जुड़ा होता है। तथा ऋण-ध्रुव एक धारामापी G के द्वारा जौकी J से जुड़ा होता है जो तार पर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श करायी जा सकती है।

बैटरी से वैद्युत धारा तार के सिरे A से सिरे B की ओर को बहती है। अत: A से B की ओर तार के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-विभव गिरता जाता है। तार की प्रति एकांक लम्बाई में विभव-पतन को विभव-प्रवणता कहते हैं तथा इसे K से प्रदर्शित करते हैं। माना जौकी को J1 पर स्पर्श कराते हैं, जबकि A और J1 के बीच विभवान्तर, सेल E के वि० वा० बल से कम है। चूंकि बिन्दु A का विभव J1 से। ऊँचा है; अत: बैटरी B1 की धारा AE J1 मार्ग से धारामापी में प्रवाहित होगी। परन्तु सेल E का धन-ध्रुव, बिन्दु A से जुड़ा है; अतः सेल की धारा AJ1E मार्ग से धारामापी में प्रवाहित होगी। स्पष्ट है। कि ये दोनों धाराएँ परस्पर विपरीत दिशाओं में हैं। परन्तु चूँकि सेल का वि० वा० बल बैटरी के कारण उत्पन्न A व J1 के बीच विभवान्तर से अधिक है; अत: सेल की धारा की प्रधानता होगी। इस प्रकार AJ1E की दिशा में प्रवाहित एक परिणामी धारा के – कारण धारामापी की सूई एक ओर विक्षेपित हो जाएगी।

इसके विपरीत यदि जौकी को J2 पर स्पर्श कराते हैं, जबकि A व J2 के बीच विभवान्तर, सेल E के वि० वा० बल से अधिक हो, तो बैटरी B1 की धारा की प्रधानता होगी। इस दशा में धारामापी में एक परिणामी धारा AEJ2 दिशा में प्रवाहित होगी और धारामापी की सूई पहले से विपरीत दिशा में विक्षेपित हो जाएगी। स्पष्ट है कि जौकी की दोनों स्थितियों J1 व J2 के मध्य में J एक ऐसा बिन्दु होगा, जहाँ पर जौकी को स्पर्श कराने पर धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होगा। यह शून्य विक्षेप की स्थिति होगी और ऐसी स्थिति में A व J के मध्य विभवान्तर, सेल के वि० वा० बल के बराबर होगा।

माना तार में बहने वाली धारा का मान i है तथा तार की 1 सेमी लम्बाई का प्रतिरोध p है, तब विभव-प्रवणता K = ip यदि तार के भाग AJ की लम्बाई l सेमी हो तथा बिन्दु A व J के बीच विभवान्तर V हो, तो

V = Kl

शून्य विक्षेप स्थिति में, विभवान्तर V सेल के विद्युत वाहक बल E के बराबर होता है। अतः

E = Kl

विभवमापी की सुग्राहिता बढ़ाने के लिए विभवमापी के तार की लम्बाई बढ़ा दी जाती है जिस कारण विभव-प्रवणता कम हो जाती है और शून्य विक्षेप की स्थिति की दूरी (l) अधिक लम्बाई पर आती है।

विभवमापी में प्रयोग होने वाले तार के विशेष गुण

  1. तार का व्यास सर्वत्र समान होना चाहिए।

  2. तार के पदार्थ का प्रतिरोध ताप-गुणांक अधिक होना चाहिए।

  3. तार के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध कम होना चाहिए।

वोल्टमीटर की तुलना में विभवमापी की श्रेष्ठता

1.जब हम सेल का वि० वा० बल विभवमापी से नापते हैं तो शून्य-विक्षेप स्थिति में सेल के परिपथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती; अर्थात् सेल खुले परिपथ पर होती है। अतः इस स्थिति में सेल के वि० वा० बल का वास्तविक मान प्राप्त होता है। इस प्रकार विभवमापी अनन्त प्रतिरोध के आदर्श वोल्टमीटर के समतुल्य है।

  1. वोल्टमीटर द्वारा वि० वा० बल नापने के लिए वोल्टमीटर में विक्षेप पढ़ना पड़ता है। विक्षेप के पढ़ने में त्रुटि रह सकती है। इसके विपरीत विभवमापी द्वारा वि० वी० बल अविक्षेप (null) विधि से नापा जाता है। इसमें तार पर शून्य-विक्षेप स्थिति को पढ़ना होता है। शून्य-विक्षेप स्थिति में पढ़ने में अधिक-से-अधिक 1 मिमी की त्रुटि हो सकती है, जो नगण्य है।
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