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लैन्थेनाइड आकुंचन क्या है? लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणाम क्या हैं?

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by kratos
 
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लैन्थेनाइड आकुंचन (Lanthanoid Contraction) – लैन्थेनाइड श्रेणी में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्याएँ एक तत्व से दूसरे तत्व तक घटती हैं, परन्तु यह कमी अत्यन्त कम होती है। उदाहरणार्थ– Ce से Lu तक जाने पर परमाण्विक त्रिज्या 183 pm से 173 pm तक घट जाती है तथा यह कमी केवल 10 pm है। इसी प्रकार Ce3+ से Lu3+ आयन तक जाने पर आयनिक त्रिज्या 103 pm से घटकर 85 pm रह जाती है तथा यह कमी केवल 18 pm है। अत: परमाणु क्रमांक में 14 की वृद्धि के लिए, परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्याओं में होने वाली कमी अत्यन्त कम है। यह कमी अन्य वर्गों तथा आवर्तो के तत्वों की तुलना में अत्यल्प है।

सारणी-लैन्थेनम तथा लैन्थेनाइडों के परमाण्विक तथा

आयनिक त्रिज्याओं में परिवर्तन (pm)

लैन्थेनाइड तत्वों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर उनके परमाणु तथा आयनिक आकारों में होने वाली स्थिर कमी ‘लैन्थेनाइड आकुंचन’ कहलाती है।

त्रिसंयोजी लैन्थेनॉइडों (Ln3+) की आयनिक त्रिज्याओं में कमी चित्र-1 में दर्शायी गई है।

लैन्थेनाइड आकुंचन का कारण (Cause of Lanthanide Contraction) – लेन्थेनाइड श्रेणी में एक तत्व से दूसरे तत्व तक जाने पर नाभिकीय आवेश एक इकाई बढ़ता है तथा एक इलेक्ट्रॉन जुड़ता है। ये नए इलेक्ट्रॉन समानान्तर 4f- उपकोशों में जुड़ते हैं। यद्यपि एक 4f- इलेक्ट्रॉन का दूसरे 4f- इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव (नाभिकीय आवेश से), f- कक्षकों के अत्यन्त विस्तृत आकार के कारण, कम होता है। यद्यपि नाभिकीय आवेश प्रत्येक पद पर एक इकाई बढ़ जाता है, इसलिए परमाणु क्रमांक तथा नाभिकीय आवेश बढ़ने पर प्रत्येक 4f- इलेक्ट्रॉन द्वारा अनुभव किया जाने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ जाता है, परिणामस्वरूप सम्पूर्ण 4f- इलेक्ट्रॉन कोश प्रत्येक तत्व के जुड़ने पर आकुंचित हो जाता है, यद्यपि यह कमी अत्यन्त अल्प होती है। इसके परिणामस्वरूप परमाणु क्रमांक बढ़ने पर लैन्थेनाइडों के आकार में नियमित हस पाया जाता है। क्रमिक अपचयनों का योग कुल लैन्थेनाइड आकुंचन देता है।

लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणाम (Consequences of Lanthanide Contraction) – लैन्थेनाइड आकुंचन के महत्त्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित हैं –

(1) द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणियों की समानता (Resemblance of second and third transition series) – आवर्त सारणी में लैन्थेनाइडों से पहले तथा बाद में आने वाले तत्वों के आपेक्षिक गुणों पर इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अग्रलिखित सारणी से स्पष्ट होता है कि Sc से Y तथा Y से La तक आकार में नियमित वृद्धि होती है।

सारणी- d-ब्लॉक के तत्वों की परमाणु त्रिज्याएँ (pm में)

लैन्थेनाइड आकुंचन

इसी प्रकार हम अन्य वर्गों में आकार में सामान्य वृद्धि की अपेक्षा कर सकते हैं, यद्यपि लैन्थेनाइडों के पश्चात् द्वितीय से तृतीय संक्रमण श्रेणियों में त्रिज्याओं की वृद्धि लगभग नगण्य होती है।

Ti → Zr → Hf

V → Nb → Ta आदि

तत्वों के युग्मों; जैसे- Zr – Hf, Nb – Ta, Mo – W आदि के आकार समान (लगभग) होते हैं तथा इन तत्वों के गुण भी समान होते हैं। अत: लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणामस्वरूप द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणियों के तत्व, प्रथम तथा द्वितीय संक्रमण श्रेणियों के तत्वों की तुलना में परस्पर अत्यधिक समानता रखते हैं।

(2) लैन्थेनाइडों में समानता ( Similarity among lanthanides) – लैन्थेनाइडों की त्रिज्याओं में अत्यन्त अल्प-परिवर्तन के कारण, इनके रासायनिक गुण लगभग समान होते हैं। अतः तत्वों को शुद्ध अवस्था में पृथक्कृत करना अत्यन्त कठिन होता है। पुनरावृत्त प्रभाजी क्रिस्टलन अथवा आयन-विनिमय तकनीकों पर आधारित आधुनिक विधियों द्वारा इनके त्रिसंयोजी आयनों के आकारों में अत्यल्प-अन्तर के आधार पर इन्हें पृथक्कृत किया जाता है। इन विधियों द्वारा तत्वों के गुणों जैसे विलेयता, संकुल आयन निर्माण, जलयोजन आदि में बहुत कम अन्तर के आधार पर इन्हें पृथक्कृत किया जाता है।

(3) क्षारकता अन्तर (Basicity differences) – लैन्थेनाइड आकुंचन के कारण लैन्थेनाइड आयनों का आकार, परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ नियमित रूप से घटता है। आकार में कमी के फलस्वरूप लैन्थेनाइड आयन तथा OH आयनों के मध्य इनके सहसंयोजक गुण La3+ से Lu3+ तक बढ़ते हैं, इसलिए परमाणु क्रमांक बढ़ने पर हाइड्रॉक्साइडों की क्षारकीय सामर्थ्य घटती है। अत: La(OH)3अधिकतम क्षारकीय है, जबकि Lu(OH)3 सबसे कम क्षारकीय है।

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