लेखिका ज्यों-ज्यों ऊँचाई की ओर बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों-
• बाज़ार लोग और बस्तियाँ कम होती जा रही थीं।
• चलते-चलते स्वेटर बुनने वाली नेपाली युवतियाँ और कार्टून ढोने वाले बहादुर नेपाली ओझल हो रहे थे।
• घाटियों में बने घर ताश के बने घरों की तरह दिख रहे थे।
• हिमालय अब अपने विराट रूप एवं वैभव के साथ दिखने लगा था।
• रास्ते सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होते जा रहे थे।
• बीच-बीच में रंग-बिरंगे खिले हुए फूल दिख जाते थे।