लेखिका ने देखा कि कोमल कायावाली औरतें हाथ में कुदाल और हथौड़े लिए भरपूर ताकत से पत्थरों पर मार रही थीं। इनमें से कुछ की पीठ पर बँधी डोको में उनके बच्चे भी बँधे थे। वे भूख से लड़ने के लिए मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ ढो रही थीं। ऐसा ही पलामू और गुमला के जंगलों में लेखिका ने देखा था कि आदिवासी युवतियाँ पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती थीं। उनके पाँव फूले हुए थे और इधर पहाड़ी औरतों के हाथों में श्रम के कारण गाँठे पड गई थीं।