‘गुर चाँटी ज्यों पागी’ से गोपियों का कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम की अभिव्यक्ति का ज्ञान होता है। गोपियों की मनोदशा ठीक वैसी ही है जैसी गुड़ से चिपटी चीटियों की होती है। जिस तरह चीटियाँ किसी भी दशा में गुड़ को नहीं छोड़ना चाहती हैं उसी प्रकार गोपियाँ भी कृष्ण को नहीं छोड़ना चाहती हैं।