साधु प्रायः गेरुए वस्त्रों में या रामनामी वस्त्र लपेटे नज़र आते हैं। उनके बढ़े दाढ़ी और जटाजूट उनके साधु होने के साधन से दिखते हैं पर यह आवश्यक नहीं कि गेरुआ वस्त्र पहनने वाला हर व्यक्ति साधु ही हो। इस कलयुग में ढोंगियों ने भी यही वस्त्र अपना लिया है, इसलिए पहनावे के आधार पर किसी को साधु नहीं माना जा सकता है।
वास्तव में साधु की पहचान उसके पहनावे के आधार पर न करके उसके विचार और व्यवहार पर करना चाहिए। आडंबरहीन जीवन, सद्व्यवहार, सत्यवादिता, परोपकार की भावना पहनावे की सादगी एवं विचारों की उच्चता देखकर किसी भी व्यक्ति को साधु की श्रेणी में रखा जा सकता है।