बालगोबिन भगत अपनी सब चीज़ साहब की मानते थे, इसका उदाहरण यह है कि उनके खेत में जो कुछ पैदा होता था, उसे सिर पर लादकर ‘साहब’ के दरबार में ले जाते थे। उस दरबार अर्थात् मठ में उसे भेंट स्वरूप रख लिया जाता और उन्हें जो कुछ प्रसाद स्वरूप दिया जाता, उसी में गुज़ारा करते थे।