गरमियों में भगत और उनकी प्रेमी मंडली आँगन में आसन जमाकर बैठ जाते। वहाँ पुँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। बालगोबिन एक पद गाते, प्रेमी-मंडली उसे दोहराती-तिहराती। धीरे स्वर एक निश्चित लय, ताल और गति से ऊँचा होने लगता और गाते-गाते भगत नाचने लगते। इस प्रकार सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाती।