भारत आने पर फ़ादर ने सबसे पहले यहाँ शिक्षा-दीक्षा लेना आवश्यक समझा। इसके लिए उन्होंने ‘जिसेट संघ’ में पहले दो साल पादरियों के बीच धर्माचार की पढ़ाई की, फिर नौ-दस वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता से बी०ए० किया और फिर इलाहाबाद से एम०ए० करने के उपरांत अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।