प्राचीन काल में प्राकृत का प्रयोग साहित्यिक एवं व्यावहारिक दोनों ही रूपों में किया जाता था। इसका प्रमाण यह है कि प्राकृत भाषा में बौद्धों एवं जैनों के हजारों ग्रंथ लिखे गए। इसके अलावा भगवान शाक्य मुनि और उनके चेलों ने प्राकृत भाषा में धर्मोपदेश दिए। बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ प्राकृत में ही रचे गए। पंडितों ने गाथा सप्तशती, सेतुबंधु महाकाव्य और कुमारपालचरित जैसे ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में ही की थी।