मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का अत्यंत गहरा जुड़ाव था। इस महीने में शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति शोक मनाते हैं। इस समय वे न शहनाई बजाते हैं और न किसी संगीत कार्यक्रम में भाग लेते हैं। आठवीं तारीख को वे करीब आठ किलोमीटर पैदल रोते हुए नौहा बजाते जाते हैं। वे इस दिन कोई राग नहीं बजाते हैं। इस प्रकार वे एक सच्चे मुसलमान की भाँति मुहर्रम से सच्चा लगाव रखते हैं।