(ii) ऐसीटोन से क्लोरोफॉर्म – ऐसीटोन के नम विरंजक चूर्ण के साथ आसवन से भी क्लोरोफॉर्म बनता है। यह अभिक्रिया निम्नलिखित पदों में होती है –
एक गोल पेंदी के फ्लास्क में 200 ग्राम विरंजक चूर्ण की 400 मिली जल से बनी लेई और 50 मिली ऐसीटोन या ऐल्कोहॉल लेकर जल ऊष्मक के ऊपर गर्म करते हैं। जिससे जल तथा क्लोरोफॉर्म का मिश्रण आसवित होकर जल से भरे ग्राही पात्र में इकट्ठा हो जाता है। पृथक्कारी कीप द्वारा आसुत द्रव का नीचे वाला अंश एकत्रित करते हैं। अम्लीय अशुद्धियों को दूर करने के लिए इसे NaOH विलयन द्वारा धोकर, फिर जल से धोकर और इसमें निर्जल CaCl2 मिलाकर पुन: आसवित करते हैं जिससे लगभग 61°C पर शुद्ध क्लोरोफॉर्म प्राप्त होता है।
भौतिक गुण – यह एक रंगहीन, मीठी गन्ध वाला, ज्वलनशील द्रव है। इसका क्वथनांक 61°C तथा आपेक्षिक घनत्व 1.485 है। यह जल में अविलेय, किन्तु ईथर व ऐल्कोहॉल में विलेय है। इसकी वाष्प को सँघने से कुछ समय के लिए मूच्र्छा आ जाती है। इसी गुण के कारण इसका उपयोग निश्चेतक (anaesthetic) के रूप में किया जाता है।
रासायनिक गुण
1. ऑक्सीकरण – सूर्य के प्रकाश तथा वायु में खुला रखने से फॉस्जीन (विषैली) या कार्बोनिल क्लोराइड गैस बनती है।
क्लोरोफॉर्म को गहरे भूरे रंग की बोतल में ऊपर तक भरकर इसलिए रखते हैं, जिससे प्रकाश और वायु अन्दर न पहुँच सके अन्यथा क्लोरोफॉर्म धीरे-धीरे ऑक्सीकृत होकर फॉस्जीन गैस बनाता है जो कि अत्यन्त घातक विष है। क्लोरोफॉर्म में 1% एथिल ऐल्कोहॉल संदमक (inhibitor) के रूप में डालते हैं और लाल-भूरे रंग की बोतल में रखते हैं जो प्रकाश को रोकती है। एथेनॉल इस अभिक्रिया में ऋणात्मक उत्प्रेरक का कार्य करता है। एथिल ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में वायु द्वारा क्लोरोफॉर्म के ऑक्सीकरण की गति अत्यन्त धीमी पड़ जाती है अर्थात् क्लोरोफॉर्म को स्थायित्व बढ़ जाता है। यदि कुछ फॉस्जीन बनता भी है तो वह एथिल ऐल्कोहॉल से अभिक्रिया करके डाइएथिल कार्बोनेट बनाता है जो विषैला नहीं होता है।
- अपचयन – यह जिंक और जल के साथ उबालने पर अपचयित होकर मेथेन देता है, Zn और तनु HCl के साथ अपचयित होकर मेथिलीन क्लोराइड देता है, जबकि Zn तथा ऐल्कोहॉलिक HCl द्वारा अपचयन पर मेथिल क्लोराइड बनता है।
3. क्लोरीन से अभिक्रिया – कार्बन टेट्रोक्लोराइड प्राप्त होता है।
4. ऐसीटोन से अभिक्रिया – क्षार की उपस्थिति में ऐसीटोन से संघनन अभिक्रिया द्वारा क्लोरीटोन प्राप्त होता है जिसका उपयोग निद्राकारी औषधि के निर्माण में होता है।
5. नाइट्रिक अम्ल से क्रिया – नाइट्रोक्लोरोफॉर्म (या क्लोरोपिक्रिन) प्राप्त होता है, जिसका उपयोग कीटनाशक व अश्रु (tear) गैस के रूप में होता है।
उपयोग – क्लोरोफॉर्म के निम्नलिखित उपयोग हैं –
30% ईथर में इसका विलयन शल्य चिकित्सा में निश्चेतक के रूप में।
लाख, रबड़, चर्बी आदि के लिए विलायक के रूप में।
दवाईयों के रूप में।
जीवाणुनाशक के रूप में।
सुगन्धित पदार्थ के रूप में।
टेफ्लॉन (PTFE) के निर्माण में।