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in Class 12 by kratos

परागण किसे कहते हैं? सैल्विया में होने वाले परागण की क्रिया का वर्णन कीजिए।

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by kratos
 
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परागण

पुंकेसर (stamen) पुष्प का नर भाग होता है जबकि स्त्रीकेसर (pistil) मादा भाग होता है। पुंकेसरों में परागकणों (pollen grains) का निर्माण होता है जो नर युग्मक अथवा शुक्राणु (sperms) उत्पन्न करते हैं। स्त्रीकेसरों में अण्डाशय (ovaries) का निर्माण होता है जिसमें मादा युग्मक अथवा अण्डाणु(egg) बनता है। प्रजनन क्रिया के सम्पन्न होने हेतु नर तथा मादा युग्मकों का संयुग्मन (fusion) आवश्यक है। चूंकि अधिकांश पौधों में परागकणों (pollen grains) के संचालन (locomotion) का अभाव होता है, इस कारण परागकणों के जायांग (gynoecium) तक पहुँचने के लिए इन्हें विभिन्न ढंग अपनाने पड़ते हैं। परागकोश में बने परागकणों का मादा पुष्प के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की घटना को परागण (pollination) कहते हैं। परागण के पश्चात् पुंकेसर और दल गिर जाते हैं, बाह्यदल या तो गिर जाते हैं या फल में चिरलग्न रहते हैं।

परागण के प्रकार

परागण (pollination) निम्नलिखित दो प्रकार का होता है –

  1. स्व-परागण (self-pollination) तथा

  2. पर-परागण (cross-pollination)।

1. स्व – परागण

स्व-परागण (self pollination) में एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प अथवा उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँचते हैं।

2. पर-परागण

इस क्रिया में एक पुष्प के परागकण उसी जाति के दूसरे पौधों के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। यहाँ पर दोनों पुष्प दो अलग-अलग पौधों पर स्थित होते हैं चाहे वे एकलिंगी हों या द्विलिंगी। पर-परागण क्रिया का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें बीज उत्पन्न करने के लिये एक ही जाति के दो पौधे भाग लेते हैं। द्विक्षयक पौधों (dioecious plants) के पुष्पों में केवल पर-परागण ही सम्भव होता है। द्विलिंगी पुष्पों में यह सामान्यतया पाया जाता है।

सैल्विया में कीट परागण

सैल्विया का पुष्प द्वि-ओष्ठि (bilabiate) होता है, ऊपरी ओष्ठ प्रजनन अंगों की रक्षा करता है तथा निचला ओष्ठ मधुमक्खियों के बैठने के लिये एक मंच (stage) का कार्य करता है। पुष्प पूर्वऍपक्व(protandrous) होता है, अर्थात् पुंकेसर, स्त्री पुंकेसर से पहले पकता है। इसमें दो पुंकेसर होते हैं।

प्रत्येक पुंकेसर का पुंतन्तु छोटा होता है और इसके सिरे पर लीवर की भाँति मुड़ा तथा असामान्य रूप से लम्बा योजी (connective) होता है जो मध्य से कुछ हटकर पुंतन्तु से जुड़ा होता है। इस प्रकार योजी दो असमान खण्डों में बँट जाता है और इसके दोनों सिरों पर एक-एक परागकोश पालि लगी रहती है। ऊपरी खण्ड बड़ा होता है तथा इसके सिरे पर स्थित पालि अबन्ध्य (fertile) होती है। निचले छोटे खण्ड के सिरे पर बन्थ्य (sterile) पालि लगी रहती है। दोनों पुंकेसरों की बन्ध्य पालियाँ दलपुंज के मुख पर स्थित होती हैं। सल्विया में परागण क्रिया मधुमक्खी (honeybee) द्वारा सम्पन्न होती है।

जब मकरन्द की खोज में कोई मधुमक्खी दलपुंज की नली में प्रवेश करती है तो निचली बन्ध्य परागकोश पालियों को धक्का लगता है जिससे योजी का ऊपरी खण्ड लीवर की भाँति नीचे झुक जाता है। इसके फलस्वरूप दोनों अबन्ध्य परागकोश पालियाँ मधुमक्खी की पीठ से टकराकर अपना परागकण इसके ऊपर बिखेर देती हैं। जब यह मधुमक्खी परिपक्व अण्डप वाले किसी दूसरे पुष्प में प्रवेश करती है तो नीचे की ओर मुड़े हुए वर्तिकाग्र (stima) इसकी पीठ से रगड़ खाकर परागकणों को चिपका लेते हैं और इस प्रकार परागण क्रिया सम्पन्न होती है।

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