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in Class 12 by kratos

निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –

(क) मानव भ्रूण का रोपण,

(ख) स्तनियों में अपरा,

या

अपरा क्या है? इसके मुख्य कार्य लिखिए।

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by kratos
 
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(क) मानव भ्रूण का रोपण

निषेचन के लगभग एक घण्टे के बाद युग्मनज (zygote) का विदलन शुरू हो जाता है और चौथे दिन तक चार बार मिटॉटिक विभाजनों द्वारा विभाजित होकर 16 कोरकखण्डों (blastomeres) की एक गोल ठोस संरचना बनती है, यह संरचना मॉरुला (morula) कहलाती है। इसका निर्माण होते-होते यह गर्भाशय में पहुँच जाता है।

मॉरुला के गर्भाशय में जाने के बाद गर्भाशय गुहा का ग्लाइकोजनयुक्त पोषक तरल मॉरुला (भ्रूण) में भीतर जाने लगता है, जिससे मॉरुला के अन्दर पोषक तरल से भरी हुई एक गुहा-सी बन जाती है। इस गुहा को ब्लास्टोसील (blastocoel) कहते हैं। भ्रूण की इस प्रावस्था को ब्लास्टोसिस्ट (blastocyst) कहते हैं। इसके बनते-बनते भ्रूण का पारभासी आवरण समाप्त हो जाता है। गुहा की दीवार की कोशिकाएँ चपटी हो जाती हैं। इन्हें अब ट्रोफोब्लास्ट (trophoblast) कहते हैं। ट्रोफोब्लास्ट गर्भाशय से पोषक रसों का अवशोषण करती है। ट्रोफोब्लास्ट आँवल (placenta) के निर्माण में भी भाग लेती हैं। ब्लास्टुला की भीतरी कोशिका पिण्ड को भ्रूणबीज (embryoblast) कहते हैं, क्योंकि इसी से भावी भ्रूण के विभिन्न भाग बनते हैं।

निषेचन के एक सप्ताह बाद ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय के ऊपरी भाग में इसकी भित्ति से चिपक जाता है। अर्थात् ब्लास्टोसिस्ट का गर्भाशय भित्ति में रोपण प्रारम्भ हो जाता है। ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह से कुछ अंगुली सदृश प्रवर्ध निकलकर गर्भाशय भित्ति के अन्तः स्तर में घुसकर निषेचन के लगभग 8 दिन बाद भ्रूण को गर्भाशयी भित्ति से जोड़ देते हैं, यही क्रिया भ्रूण का रोपण (implantation of embryo) है।

(ख) स्तनियों में अपरा, आँवल या जरायु

अपरा एक संयुक्त ऊतक है जो स्तनपोषियों में, मादा के गर्भ में, भ्रूण (embryo) का गर्भाशय भित्ति के साथ संरचनात्मक तथा क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करती है। निषेचन (fertilization) के बाद निषेचित अण्डाणु, विदलन (cleavage) करता हुआ एक परिवर्द्धनशील भ्रूण में परिवर्तित होकर जब गर्भाशय (**) में पहुँचता है तो गर्भाशय भित्ति के चिपचिपा हो जाने के कारण उसी से चिपक जाता है। यह क्रिया रोपण (implantation) है। इस समय तक कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) के प्रभाव से गर्भाशय भित्ति में अनेक परिवर्तन होते हैं।

गर्भाशय भित्ति से चिपके हुए भ्रूण की विशिष्ट कलाएँ तथा गर्भाशय भित्ति मिलकर अपरा (placenta) का निर्माण करते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया को गर्भाधान (conception) कहते हैं।

अपरा के कार्य (Functions of Placenta) – अपरा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ऊतक है, इसका भ्रूण की जीवन-क्रियाओं को चलाने के लिए मादा के शरीर से विशिष्ट सम्बन्ध है। अपरा के अग्रलिखित कार्य होते हैं –

1. भूण का पोषण – भ्रूण अपरा के द्वारा ही माता से समस्त पोषक पदार्थ प्राप्त करता है। माता की रुधिर वाहिनियों का सम्बन्ध भ्रूण की रुधिर वाहिनियों से होता है; अतः माता के रुधिर में आने वाले पचे हुए खाद्य पदार्थ, सरल रूप में भ्रूण को मिलते रहते हैं। अपरा में इन खाद्य पदार्थों का और भी सरलीकरण किया जाता है तथा यह भ्रूण की आवश्यकता के लिए कुछ खाद्य पदार्थों का संग्रह भी करता है।

2. भूण का श्वसन – माता के शरीर से रुधिर के द्वारा ही भ्रूण को ऑक्सीजन के अणु प्राप्त होते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड भी इसी रुधिर द्वारा वापस की जाती है। इस प्रकार श्वसन क्रिया के लिए वात विनिमय (gaseous exchange) का कार्य अपरा ही करता है।

3. भूण का उत्सर्जन – भ्रूण के उत्सर्जी पदार्थ भ्रूण के रुधिर से अपरा क्षेत्र में माता के रुधिर में विसरित होते रहते हैं। इनका निष्कासन भी माता के उत्सर्जी अंगों द्वारा किया जाता है।

4. हॉर्मोन्स का स्रावण – गर्भावस्था को उचित रूप में बनाये रखने आदि के लिए अपरा से एस्ट्रोजेन्स, प्रोजेस्टेरॉन, जरायु गोनैडोट्रॉपिन आदि हॉर्मोन्स का स्रावण होता है। इसी प्रकार प्रसव | को आसान करने के लिए अपरा द्वारा रिलैक्सिन हॉर्मोन का भी स्रावण होता है।

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