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(क) सगर्भता का चिकित्सीय समापन

(ख) सरोगेट माँ

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by kratos
 
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(क) सगर्भता का चिकित्सीय समापन

गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जानबूझ कर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को प्रेरित गर्भपात या चिकित्सीय सगर्भता समापन (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी, MTP) कहते हैं। पूरी दुनिया में हर साल लगभग 45 से 50 मिलियन (4.5-5 करोड़) चिकित्सीय सगर्भता समापन कराए जाते हैं जो कि संसार भर की कुल सगर्भताओं का 1/5 भाग है। निश्चित रूप से यद्यपि जनसंख्या को घटाने में MTP की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसका उद्देश्य जनसंख्या घटाना नहीं है तथापि MTP में भावनात्मक, नैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक पहलुओं से जुड़े होने के कारण बहुत से देशों में यह बहस जारी है कि चिकित्सीय सगर्भता समापन को स्वीकृत या कानूनी बनाया जाना चाहिए या नहीं। भारत सरकार ने इसके दुरुपयोग को रोकने की शर्तों के साथ 1971 ई० में चिकित्सीय सगर्भता समापन को कानूनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। इस प्रकार के प्रतिबन्ध अंधाधुंध और गैरकानूनी मादा भ्रूण हत्या तथा भेदभाव को रोकने के लिए बनाए गए, जो अभी भी भारत देश में बहुत ज्यादा हो रहा है।

चिकित्सीय सगर्भता समापन क्यों? निश्चित तौर पर इसका उत्तर अनचाही सगर्भताओं से मुक्ति पाना है। फिर चाहे वे लापरवाही से किए गए असुरक्षित यौन सम्बन्धों का परिणाम हों या मैथुन के समय गर्भ निरोधक उपायों के असफल रहने या बलात्कार जैसी घटनाओं के कारण हों। इसके साथ ही चिकित्सीय सगर्भता समापन की अनिवार्यता कुछ विशेष मामलों में भी होती है जहाँ सगर्भता बने रहने की स्थिति में माँ अथवा भ्रूण अथवा दोनों के लिए हानिकारक अथवा घातक हो सकती है।

सगर्भता की पहली तिमाही में अर्थात् सगर्भता के 12 सप्ताह तक की अवधि में कराया जाने वाला चिकित्सीय सगर्भता समापन अपेक्षाकृत काफी सुरक्षित माना जाता है। इसके बाद द्वितीय तिमाही में गर्भपात बहुत ही संकटपूर्ण एवं घातक होता है। इस बारे में एक सबसे अधिक परेशान करने वाली यह बात देखने में आई है कि अधिकतर MTP गैर कानूनी रूप से, अकुशल नीम-हकीमों से कराए जाते हैं। जो कि न केवल असुरक्षित होते हैं, बल्कि जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं। दूसरी खतरनाक प्रवृत्ति शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्ववेधन का दुरुपयोग (यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक) होता है।

बहुधा ऐसा देखा गया है कि यह पता चलने पर कि भ्रूण मादा है, MTP कराया जाता है, जो पूरी तरह गैर-कानूनी है। इस प्रकार के व्यवहार से बचना चाहिए, क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। असुरक्षित मैथुन से बचाव के लिए प्रभावशाली परामर्श सेवाओं को देने तथा गैर-कानूनी रूप से कराए गए गर्भपातों में जान की जोखिम के बारे में बताए जाने के साथ-साथ अधिक-से-अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि उपर्युक्त प्रवृत्तियों को रोका जा सके।

(ख) सरोगेट माँ

कुछ विरल परिस्थितियों में इन विट्रो निषेचित अण्डाणुओं को परिपक्व होने के लिए सरोगेट माँ का उपयोग किया जाता है। कुछ स्त्रियों में अण्डाणु का निषेचन तो सामान्य रूप से होता है किन्तु कुछ विकारों के कारण भ्रूण का परिवर्धन नहीं हो पाता है। ऐसी परिस्थितियों में स्त्री के अण्डाणु व उसके पति के शुक्राणु का कृत्रिम निषेचन कराया जाता है तथा भ्रूण को 32-कोशिकीय अवस्था में किसी अन्य इच्छुक स्त्री के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है। यह स्त्री सरोगेट माँ कहलाती है तथा भ्रूण के पूर्ण विकसित होने पर शिशु को जन्म देती है। मनुष्य के साथ पशुओं में भी इस प्रक्रिया द्वारा शिशु उत्पत्ति करायी जा रही है। मनुष्य की तुलना में पशुओं के भ्रूण का स्थानान्तरण अधिक सरल होता है। यद्यपि परखनली शिशु का जन्म जीव विज्ञान की दृष्टि से एक अत्यधिक सफल उपलब्धि है, किन्तु इससे जुड़ी अनेक कानूनी व नैतिक समस्याएँ भी सामने आ रही हैं, जैसे इस प्रकार जन्मे बच्चे के ऊपर कानूनी हक आदि।

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