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in Class 12 by kratos

ई० कोलाई जैसे जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत कीजिए।

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by kratos
 
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पुनर्योगज डी०एन०ए० तकनीक

DNA में किसी प्रकार के हेर-फेर या एक जीव के DNA में दूसरे जीव के DNA को जोड़ना, DNA पुनर्योगज (DNA recombination) कहलाता है। इस तकनीक को आनुवंशिक इंजीनियरिंग या DNA इंजीनियरिंग भी कहते हैं। इस तकनीक द्वारा DNA खण्डों के नए क्रम तैयार किए जाते हैं। प्रकृति में यह कार्य गुणसूत्रों में विनिमय (crossing over) प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है। DNA पुनर्योगज तकनीक द्वारा उच्च जन्तु और पौधों के DNA के इच्छित भागों की अनेकों प्रतिकृतियाँ (copies) तैयार की जाती हैं। इस प्रक्रिया को प्रायः जीवाणुओं में सम्पन्न कराया जाता है।

पुनर्योगज DNA प्राप्त करने के लिए निम्न तीन विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं –

(i) DNA की दो शृंखलाओं के अन्तिम छोर पर नई DNA श्रृंखलाएँ जोड़कर (By joining new DNA chains at the end point of two chains of DNA) – यदि DNA के सिरे पर कुछ क्षारक (जैसे- CCCCC) जोड़ दें तथा दूसरे DNA के सिरे पर इसके संयुग्मी क्षारक (GGGGG) जोड़ दें और फिर इन दोनों प्रकार के DNA को मिलाएँ तो नई श्रृंखला आपस में हाइड्रोजन बन्ध बनाकर दो भिन्न DNA अणुओं को संयुक्त कर देगी। इस कार्य के लिए विशेष एन्जाइम टर्मिनल ट्रान्सफरेज(terminal transferase) का उपयोग किया जाता है। अनजुड़े स्थानों को डी०एन०ए० लाइगेज (DNA ligase) नामक एन्जाइम द्वारा जोड़ देते हैं।

(ii) प्रतिबन्ध एन्जाइम्स की सहायता से (With the help of restriction enzymes) – इस विधि में संयुग्मी क्षारकों के बीच हाइड्रोजन बन्ध बनाकर संकर DNA का निर्माण किया जाता है। इस विधि में एक विशेष एन्जाइम, प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएज टाइप-II एन्जाइम (restriction endonuclease enzyme) का उपयोग किया जाता है। ये एन्जाइम चाकू की तरह कार्य करते हैं तथा DNA श्रृंखला को विशिष्ट स्थानों पर इस प्रकार से काटते हैं कि वांछित जीन्स वाले खण्ड प्राप्त हो सकें। अब तक लगभग 350 प्रकार के प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम ज्ञात हैं जो DNA अणु में 100 से अधिक अभिज्ञान स्थलों (recognition sites) को पहचानते हैं। पृथक् DNA खण्ड को लाइगेज एन्जाइम द्वारा आवश्यकतानुसार DNA खण्ड से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु के रूप में (संवाहक वेक्टर) किसी पोषद कोशिका में प्रवेश कराकर इसकी असंख्य प्रतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।

जैसे- ई० कोलाई प्लाज्मिड संवाहक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस विधि से दो विभिन्न जीवों; विभिन्न प्रकार के पौधों आदि के मध्य संकरण की सम्भावना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, पौधों और जन्तुओं में संकरण की सम्भावना भी बढ़ गई है। संकरित जीन में दोनों ही जीवों के गुण उपस्थित होंगे।

(iii) क्लोनिंग (Cloning)—यह विधि सबसे सरल तथा उपयोगी है। शरीर में प्रत्येक पदार्थ के संश्लेषण के लिए कोई निश्चित जीन उत्तरदायी होता है। यदि इस विशिष्ट जीन को प्लाज्मिड के साथ संकरित करा दिया जाए और इस संकरित DNA को पुनः जीवाणु की कोशिका में स्थापित कर उपयुक्त संवर्धन माध्यम में उगने दिया जाए तो जीवाणु में वह जीन उसी पदार्थ को संश्लेषण करता है जो कि वह मूल शरीर में करता था। इस समस्त प्रक्रम को क्लोनिंग कहते हैं। पोषी जीवाणु के लिए ई० कोलाई का उपयोग किया जाता है।

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