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in Class 12 by kratos

सहोपकारिता (परस्परता) किसे कहते हैं? उदाहरण देकर इसको स्पष्ट कीजिए।

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by kratos
 
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सहोपकारिता (Mutualism) – यह दो भिन्न प्रजाति के जीवों के बीच पाया जाने वाला सहजीवी (symbiotic) सम्बन्ध होता है जिसमें दोनों जीवों को परस्पर लाभ (benefit) होता है। कवक और प्रकाश-संश्लेषी शैवाल या सायनोबैक्टीरिया के बीच घनिष्ठ सहोपकारी सम्बन्ध का उदाहरण लाइकेन में देखा जा सकता है। इसी प्रकार कवकों और उच्चकोटि पादपों की जड़ों के बीच कवकमूल (माइकोराइजी) साहचर्य है। कवक मृदा से अत्यावश्यक पोषक तत्वों के अवशोषण में पादपों की सहायता करते हैं, जबकि बदले में पादप कवकों को ऊर्जा-उत्पादी कार्बोहाइड्रेट देते हैं। इसी प्रकार लेग्यूम-राइजोबियम सह-सम्बन्ध है। सहोपकारिता के सबसे शानदार और विकास की दृष्टि से लुभावने उदाहरण पादप-प्राणी सम्बन्ध में पाए जाते हैं। पादपों को अपने पुष्प परागित करने और बीजों के प्रकीर्णन के लिए प्राणियों की सहायता चाहिए। स्पष्ट है कि पादप को जिन सेवाओं की अपेक्षा प्राणियों से है उसके लिए शुल्क तो देना होगा। पुरस्कार अथवा शुल्क के रूप में ये परागणकारियों को पराग और मकरंद तथा प्रकीर्णकों को रसीले और पोषक फल देते हैं।

लेकिन परस्पर लाभकारी तंत्र की ‘धोखेबाजी’ से रक्षा होनी चाहिए, उदाहरण के लिए, ऐसे प्राणी जो परागण में सहायता किए बिना ही मकरंद चुराते हैं। अब आप देख सकते हैं कि पादप-प्राणी पारस्परिक क्रिया में सहोपकारियों के लिए प्राय: सह-विकास’ क्यों शामिल है, अर्थात् पुष्प और इसके परागणकारी जातियों के विकास एक-दूसरे से मजबूती से जुड़े हुए हैं।

अंजीर के पेड़ों के अनेक जातियों में बर्र की परागणकारी जातियों के बीच मजबूत सम्बन्ध है। इसका अर्थ यह है कि कोई दी गई अंजीर जाति केवल इसके साथी’ बर्र की जाति से ही परागित हो सकती है, बर्र की दूसरी जाति से नहीं। मादा बर्र फल को न केवल अंडनिक्षेपण के लिए काम में लेती है; बल्कि फल के भीतर ही वृद्धि कर रहे बीजों को डिंबकों के पोषण के लिए प्रयोग करती है।

अंडे देने के लिए उपयुक्त स्थल की तलाश करते हुए बर्र अंजीर पुष्पक्रम को परागित करती है। इसके बदले में अंजीर अपने कुछ परिवर्धनशील बीज, परिवर्धनशील बर्र के डिंबंकों को, आहार के रूप में देता है।

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