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in Class 12 by kratos

पारिस्थितिक तन्त्र में मानव की भूमिका’ शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए।

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by kratos
 
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बहुत पुराने समय से मनुष्य प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र (natural ecosystem) को नष्ट करके अपनी इच्छानुसार बदलता रहा है। उसे मकान बनाने के लिए और ईंधन के लिए लकड़ी की आवश्यकता होती है। साथ ही वह अपनी इच्छानुसार विभिन्न फसलें उगाने व फलों के उद्यान लगाने के लिए भी प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को नष्ट करता रहा है।

जिस समय संसार में कम मानव थे, प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र कम ही नष्ट होता था और मामूली रूप में बदल पाता था, परन्तु जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ रहने के लिए वे सड़क, आदि बनाने के लिए स्थान की आवश्यकता, मकान बनाने की सामग्री व ईंधन की आवश्यकता और खेती के लिए भूमि की आवश्यकता बढ़ती गई, जिस कारण प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को उत्पादन, इत्यादि के विचार के बिना ही नष्ट कर दिया गया या उसका स्वरूप बहुत बदल दिया गया। इस प्रकार धीरे-धीरे सन्तुलित पारिस्थितिक तन्त्र (balanced ecosystem) समाप्त होने लगे, क्योंकि ऊर्जा और दूसरे पदार्थों का सन्तुलन मनुष्यों व जन्तुओं द्वारा नष्ट कर दिया गया।

मिट्टी की ऊपर की उपजाऊ सतह अथवा परत वायु व वर्षा के जल द्वारा अपरदन (erosion) से नष्ट होकर वनस्पतिविहीन हो गई। इस प्रकार मनुष्य द्वारा कृत्रिम पारिस्थितिक तन्त्र (artificial ecosystem) का विकास हुआ। बहुत से खरपतवार (weed) व जीवनाशी (pests) मनुष्य द्वारा भूमण्डल पर फैलकर प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को बहुत हानि पहुँचाते हैं। प्राकृतिक वनस्पति के विनाश के कारण अपरदन (erosion), बाढ़ (flooding), रेत का एकत्रित होना (silting) अधिक तेजी से होता है। स्वच्छ जल के तालाबों का पारिस्थितिक तन्त्र बाढ़ से नष्ट हो जाता है। जलीय पारिस्थितिक तन्त्र (aquatic ecosystem ), गन्दे जल और कारखानों के बेकार बचे हुए पदार्थ से दूषित होकर बदल जाता है।

इसी प्रकार कोयला, गैस व तेल के अधिक मात्रा में जलने से वायु दूषित हो जाती है, क्योंकि इनके जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड व धुएँ के छोटे-छोटे कण पौधे की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं। मनुष्य विघ्न डालने वाले कार्यों द्वारा स्थिर पारिस्थितिक तन्त्रों को कम स्थिर पारिस्थितिक तन्त्रों में बदलता रहता है जिससे प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्रों की स्थिरता नष्ट हो जाती है। जिस समय शहर बनते हैं, पारिस्थितिक तन्त्र का और अधिक विनाश हो जाता है। खाद्य आपूर्ति में आने वाली फसलों के कारण पारिस्थितिक तन्त्रों को बदलना अधिक आवश्यक होता जा रहा है।

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