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in Class 12 by kratos

किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?

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by kratos
 
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जाति क्षति के कारण (Causes of Species Loss) – विभिन्न समुदायों में जीवों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। जब तक किसी पारितन्त्र में मौलिक जाति उपस्थित रहती है तब तक प्रजाति के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती रहती है। मौलिक जाति के विलुप्त होने पर इसके जीनपूल में उपस्थित महत्त्वपूर्ण लक्षण विलुप्त हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन मानव हस्तक्षेप के कारण सम्पूर्ण विश्व जाति क्षति की बढ़ती हुई दर का सामना कर रहा है। जाति क्षति के मुख्य कारण निम्नवत् हैं –

(i) आवासीय क्षति तथा विखण्डन (Habitat Loss and Fragmentation) – मानवीय हस्तक्षेप के कारण जीवों के प्राकृतिक आवासों का नाश हुआ है। जिसके कारण जातियों का विनाश गत 150 वर्षों में अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है। मानव हितों के कारण औद्योगिक क्षेत्रों, कृषि क्षेत्रों, आवासीय क्षेत्रों में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे वनों का क्षेत्रफल 18% से घटकर लगभग 9% रह गया है। आवासीय क्षति जन्तु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है।

विशाल अमेजन वर्षा वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काट कर साफ कर दिया गया है। इसमें निवास करने वाली करोड़ों जातियाँ प्रभावित हुई हैं और उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है। आवासीय क्षति के अतिरिक्त प्रदूषण भी जातियों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। मानव क्रियाकलाप भी जातीय आवासों को प्रभावित करते हैं। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है, तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए वह बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि में कमी होती है।

(ii) अतिदोहन (Over Exploitation) – मानव हमेशा से भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, परन्तु लालच के वशीभूत होकर मानव प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक दोहन कर रहा है जिसके कारण बहुत-सी जातियाँ विलुप्त हो रही हैं। अतिदोहन के कारण गत 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं। अनेक समुद्री मछलियों की प्रजातियाँ शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की अनेक जातियाँ खतरे में हैं।

(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण (Alien Species Invasions) – जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जान बूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास (पार्थेनियम) लैंटाना और हायसिंथ ( आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश) जातियों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।

(iv) सहविलुप्तता (Co-extinctions) – एक जाति के विलुप्त होने से उस पर आधारित दूसरी जन्तु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। उदाहरण के लिए– एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है, तब उसके विशिष्ट परजीवी भी विलुप्त होने लगते हैं।

(v) स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि ( Shifting or Jhum Cultivation) – जंगलों में रहने वाली जन जातियाँ विभिन्न जन्तुओं का शिकार करके भोजन प्राप्त करती हैं। इनका कोई निश्चित आवास नहीं होता। ये जीवनयापन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानान्तरित होती रहती हैं। ये जंगल की भूमि पर खेती करते हैं, इसके लिए ये जनजातियाँ प्राय: जंगल के पेड़-पौधों, घास फूस को जलाकर नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इसके कारण वन्य प्रजातियाँ स्थानाभाव के कारण प्रभावित होती हैं।

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