कबीर के अनुसार निंदक वह व्यक्ति है जो अपने आसपास रहने वालों की स्वाभाविक कमियों को अनदेखा नहीं करता है। वह उन कमियों की ओर व्यक्ति का ध्यान बार-बार आकर्षित कराता है। उसकी इस आलोचना से व्यक्ति गलतियों और अपनी कमियों के प्रति सजग हो जाता है। वह उन्हें दूर करने या ढंकने का प्रयास करता है और सुधार के लिए उन्मुख हो जाता है। आत्मसुधार की भावना पनपते ही व्यक्ति धीरे-धीरे अपने दुर्गुणों और कमियों से मुक्ति पा जाता है। ऐसा करने में व्यक्ति को कुछ खर्च भी नहीं करना पड़ता है। इस तरह निंदक अपने आसपास रहने वालों का परिष्करण करता है।