कवि बिहारी ने छाया के प्रति अनूठी कल्यना की है। स्पष्ट कीजिए।
कवि बिहारी ने जेठ माह की प्रचंड गरमी के बीच छाया को देखकर अनूठी और सर्वथा नवीन कल्पना की है कि छाया भी गरमी से बेहाल होकर जंगल में चली गई है और वह भी घर में या पेड़ों के नीचे बैठना चाहती है अर्थात् छाया भी छाया चाहने लगी है।