भाव स्पष्ट कीजिए
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
इन पंक्तियों का अर्थ है कि मनुष्य को अपने निर्धारित उद्देश्य रूपी मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक विघ्न-बाधाओं से जूझते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। इस मार्ग पर चलते हुए परस्पर भाई-चारे की भावना उत्पन्न करो, जिससे आपसी भेद-भाव दूर हो जाए। इसके अतिरिक्त बिना किसी तर्क के सतर्क होकर इस मार्ग पर चलना चाहिए।