प्रस्तुत कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव का जमींदार था। उसके पिता किसी समय बड़े धन धान्य सम्पन्न थे। गाँव में भव्य मंदिर एवं पक्का तालाब बनवाया था जिसकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, कहा जाता है कि कभी उनके दरवाजे पर हाथी झूमता था, आज वहाँ बूढ़ी भैंस थी। उनकी वर्तमान आय एक हजार रुपये वार्षिक से अधिक न थी, आधी से अधिक संपत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे। इनके दो पुत्र थे। बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ, छोटे बेटे का नाम लालबिहारी सिंह था। श्रीकंठ अध्ययनशील और मेहनती लड़का था। उसने बी.ए. की डिग्री प्राप्त कर, शहर में नौकरी में लग गया था, साथ ही उसे आयुर्वेद औषधियों में अत्यधिक रूचि भी थी। वह भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से प्रेरित था जिसके कारण उसका गाँव में बड़ा सम्मान था। लालबिहारी सिंह दोहरे बदन का नौजवान था जो अपने बड़े भाई की तुलना में अधिक रौबीला एवं स्वस्थ था। वह खूब खाता पीता और मस्ती में व्यस्त रहता था। बड़े बेटे की शादी आनंदी से हुई जो एक सुशील, सम्पन्न परिवार की लड़की थी। छोटे बेटे का विवाह एक साधारण जमींदार की लड़की के साथ हुआ।