प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘युवाओं से’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक स्वामी विवेकानंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य में स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि स्वार्थ भावना को त्यागकर उचित मार्ग पर चलना अनिवार्य है।
स्पष्टीकरण : स्वामीजी के अनुसार संगठन के लिए जो बातें चाहिए, आज उनका अभाव है। वास्तव में देशभक्तों की एकता के लिए आपसी ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार – ये सारी बातें नहीं होनी चाहिए। इनसे एकता में बाधा पहुँचती है।