महादेवी वर्मा अच्छी कवयित्री ही नहीं, बल्कि विशिष्ट गद्य लेखिका भी हैं। वे रेखाचित्र और संस्मरण लिखने में प्रवीण हैं। इनके रेखाचित्रों में संस्मरण की शैली भी पाई जाती है। अतः इनके रेखाचित्र गंगा-जमुना का सुंदर संगम है। महादेवी वर्मा ने ‘बिन्दा’ रेखाचित्र में अपने बचपन की सखी की दर्दभरी कहानी की मार्मिक तस्वीर खींची है।
महादेवी वर्मा अच्छी कवयित्री ही नहीं, बल्कि विशिष्ट गद्य लेखिका भी हैं। वे रेखाचित्र और संस्मरण लिखने में प्रवीण हैं। इनके रेखाचित्रों में संस्मरण की शैली भी पाई जाती है। अतः इनके रेखाचित्र गंगा-जमुना का सुंदर संगम है। महादेवी वर्मा ने ‘बिन्दा’ रेखाचित्र में अपने बचपन की सखी की दर्दभरी कहानी की मार्मिक तस्वीर खींची है।
बिन्दा पाँच-दस मिनट के लिए अदृश्य हो जाती, तो पंडिताइन चाची शेरनी की तरह दहाड़ती थी और बिन्दा हिरन की बच्ची की तरह थर-थर काँप उठती थी। पंडिताइन चाची बात-बात पर बिन्दा को डाँटा करती थी। इतना ही नहीं, वह बिन्दा को भद्दी से भद्दी गालियाँ भी देती थी।
लेखिका भी बिन्दा की उम्र की ही थी, पर बिन्दा की दुःख-भरी कहानी समझ नहीं पाती थी। वह घर में कोई भी काम नहीं करती थी, फिर भी उसकी माँ उसे नहीं डाँटती थी, लेकिन बिन्दा दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह काम करती रहती थी, तब भी डाँट-फटकार सुनती थी। इसका कारण लेखिका का बाल-मन समझ नहीं पाया।
बिन्दा ने एक दिन चाँदनी रात में चमकते हुए एक तारे को दिखाकर अपनी बाल-सखी से कहा कि लो, वह देखो। मेरी अम्मा आकाश में तारा बनकर चमक रही है। लेखिका ने अपनी माँ से कहा कि माँ! तुम कभी भी तारा न बनना। तुम सदा मेरे पास ही रहो। लेखिका की माँ अपनी बेटी की बातें सुनकर सुन्न रह गई।
बिन्दा को चेचक की बीमारी लगी हुई थी। माँ-बाप उसे आँगन में खाट पर छोड़कर, घर के ऊपरी भाग में रहने लगते हैं, जब कि बिन्दा खाट पर अकेली पड़ी रहती थी।
बिन्दा कई दिन तक खाट पर कराहती रही। एक दिन अचानक लेखिका को पता चला कि बिन्दा अपनी माँ से मिलने आकाश में चली गई है। लेखिका के मन में अपनी बाल्य-सखी बिन्दा का दर्द-भरा चेहरा हमेशा बना रहा। वह उस दीन बिन्दा को नहीं भूल पाई।