प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘मेरी बद्रीनाथ यात्रा’ नामक – पाठ से लिया गया है जिसके लेखक विष्णु प्रभाकर है।
संदर्भ : लेखक जब अपनी बद्रीनाथ, केदारनाथ यात्रा पर गये, तब उनकी यात्रा में लोगों के बीच बहुत हँसी-मजाक हुआ करता था।
स्पष्टीकरण : बद्रीनाथ यात्रा के दौरान लेखक को कई रोचक अनुभव हुए जिसमे कभी-कभी अनायास ही उनमें से कोई हँसी का पात्र बन जाता। एक दिन वे अपने दल के साथ एक छोटी सी चट्टी पर खाना खा रहे थे कि सहसा उनके दल के एक वयोवृद्ध सज्जन चिल्ला उठे, ‘अरे बिच्छू, बिच्छू’, जिसे सुनकर सभी चौंककर उस ओर देखने लगे। देखने पर बिच्छू सा कुछ दिखाई दिया परन्तु उसमें कोई हरकत न थी। मोमबत्ती की रोशनी में ध्यान से देखने पर ज्ञात हुआ कि जिसे सब बिच्छू समझ रहे थे वह चाबियों का गुच्छा था जो सज्जन की जेब से लटक-कर जाँघ पर आ गया था।