प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘मेरी बद्रीनाथ यात्रा’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक विष्णु प्रभाकर है।
संदर्भ : लेखक जब केदारनाथ घाटी से गरूड़ गंगा पहुंचे, तब उन्हें स्नान करना था, लेकिन उनमें से एक मित्र यात्रा में नहाना आवश्यक नहीं समझते थे।
स्पष्टीकरण : बद्रीनाथ की घाटी में बहनेवाली ‘अलकनंदा’ नदी का पानी बहुत थंडा था। लेखक के मित्र यात्रा में नहाना आवश्यक नहीं समझते थे किन्तु यात्रा कि प्रथा के अनुसार सभी को नदी में नहाना जरूरी था। विवश होकर लेखक के मित्र नहा कर आये पर बुरी तरह काँप रहे थे; उन्हें छेड़ने के लिए लेखक ने पूछा “दिल जम गया या बच गया”। इसके उत्तर में उन्होंने भी हास्यपूर्ण ढंग से बताया कि “जम कैसे सकता है, दिल पर पानी लगने ही नहीं दिया।’