प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘मेरी बद्रीनाथ यात्रा’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक विष्णु प्रभाकर है। .
संदर्भ : लेखक बद्रीनाथ के मंदिर के बारे में बताते हुए यह वाक्य कहते हैं।
स्पष्टीकरण : अत्यधिक ऊँचाई पर बसे इस मंदिर ने भयंकर तूफानों को झेला, नष्ट भी हुआ; फिर भी संघर्षशील मानव अपनी श्रद्धा और भक्ति समर्पण करने यहाँ आता है, जो प्रकृति का वैभव है। बद्रीनारायण मंदिर कला की दृष्टी से कोई महत्व नहीं रखता, फिर भी उसमें एक आकर्षण है। वह आकर्षण है सरल भक्ति का, प्रकृति के वैभव का है।