धरती माता की कोख में अमूल्य निधियाँ भरी हैं, जिनके कारण वह वसुंधरा कहलाती है। लाखो, करोड़ों वर्षो से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथ्वी के गर्भ में पोषण मिला है। नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथ्वी की देह को सजाया है। पृथ्वी की गोद में जन्म लेनेवाले जड़-पत्थर कुशल शिल्पियों से सँवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं। नाना प्रकार के अनगढ़ रत्न, विन्ध्य की नदियों के प्रवाह में चिलकते घाट से नई शोभा फूट पड़ती है।