प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रिहर्सल’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक ओमप्रकाश आदित्य हैं।
संदर्भ : बीमार स्त्री जब वैद्य परमानंद के पास इलाज के लिए आती है तब स्त्री की नब्ज पकड़ते हुए परमानंद यह वाक्य कहते हैं।
स्पष्टीकरण : वैद्य परमानन्द के पास एक अधेड़ उम्र की स्त्री आती है और आकर बेंच पर बैठती है। वह बीमार है। स्त्री वैद्य परमानन्द को बतलाती है कि उसका दिल धड़कता है, नीन्द नहीं आती, आदि-आदि। यह सुनकर वैद्य जी उस स्त्री से कहते हैं कि उसका बचना मुश्किल हैं। स्त्री मरना नहीं चाहती। वैद्य से प्रार्थना करती है कि उसे बचाले। तब वैद्य परमानंद उक्त वाक्य को स्त्री से कहते हैं।