पात्रवर्गः
एक बीमार स्त्री
वैद्य परमानन्द
किसान
अध्यापक
प्रोफेसर पांडुरंग
एक बालक (रमेश)
बालक के पिता, माता आदि।
श्री ओमप्रकाश ‘आदित्य’ हिन्दी में एक सफल एकांकीकार हैं। इन्होंने ‘रिहर्सल’ एकांकी में दो वैद्यों के अशास्त्रीय चिकित्सा-विधान का मजाक उड़ाया है। लेखक ने अपने हास्य-चातुर्य से वातावरण को आल्हादकारी बनाया है। लेखक का संकेत है कि ऐसे अयोग्य वैद्यों से दूर रहना चाहिए।
परमानंद एक आयुर्वेद वैद्य हैं। वे हर रोग की रामबाण औषधि ‘अमर भास्कर चूर्ण’ मानते हैं। हर किसी रोगी को, हर किसी बीमारी के लिए परमानंद उन्हें यही दवा देते हैं। एक बार एक किसान अपनी गाय लेकर वैद्य परमानंद के पास आया। तुरंत वैद्य ने ‘अमर भास्कर चूर्ण’ उसके हाथ में रख दिया। किसान ने चकित होकर कहा कि वैद्यजी! बीमारी मुझे नहीं, मेरी गाय को है। तब वैद्यजी ने तड़ाक से जवाब दिया कि बीमारी उसे है या उसकी गाय को, कोई फर्क नहीं पड़ता। यही दवा गाय को पिलाओ। गाय ठीक हो जाएगी। किसान अवाक् रह गया।
प्रोफेसर पांडुरंग अजीब, ढंग के वैद्य हैं। जब कोई मरीज उसके पास आता है, वह रोगी से कई उलटे-सीधे सवाल करके उसकी जान खाता है। मरीज की शिकायत सुने बिना प्रोफेसर पांडुरंग दवा देता है। एक बीमार स्त्री दिल की धड़कन की शिकायत लेकर प्रोफेसर पांडुरंग के पास आई।
प्रोफेसर ने उससे कहा कि दिल की धड़कन तो होगी है। वह तो उसका गुण धर्म है। आँधी-तूफान में, शेर-बाघ के सामने उसे धैर्य से खड़े होना चाहिए। यह दिल कुछ नहीं कर सकता। हर स्त्री को दिलेर बनने की सलाह देता है। वह स्त्री अपना सिर पीटते हुए चली जाती है।
रमेश नामक बारह साल का लड़का बेहोश हो गया था। वैद्य परमानंद उस लड़के की जाँच करने उसके घर आता है। वह लड़के की जाँच करके ऊट-पटांग बातें करने लगता है। इतने में लड़के की बहन प्रोफेसर पांडुरंग को बुला लाती है। दोनों वैद्य आपस में छींटाकशी करने लगते हैं। आपस में वे दोनों झगड़ने लगते हैं। इधर लड़के के माँ-बाप परेशान होते हैं। मगर वैद्यों का झगड़ा खत्म नहीं होता। इतने में बेहोश लड़का उठ बैठता है। यह देखकर सब लोग दंग रह जाते हैं। तब लड़का रमेश कहता है कि अगले दिन स्कूल के वार्षिकोत्सव नाटक में बेहोशी का अभिनय करना था। ‘रिहर्सल’ के तौर पर उसने बेहोश होने का नाटक किया।
यह सुनकर वैद्य परमानंद जी सचमुच बेहोश होने लगते हैं और प्रोफेसर पांडुरंग उसे उठाने लगते है|