दोहे का भावार्थः
कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन मांहि| ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि ॥५॥
कस्तूरी नामक सुगंधित वस्तु मृग की नाभि में ही होती है, परन्तु वह उसे जंगल में खोजता फिरता है। उसी प्रकार ईश्वर सबके हृदय में निवास करता है, परन्तु लोग उसे देख नहीं पाते।