दोहे का भावार्थः
बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम। जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम ||೯||
मैं तुम्हारा नाम रटती हुई बहुत दिनों से अर्थात् न जाने कब से तुम्हारे आने का मार्ग देख रही हूँ। मन तुमसे मिलने के लिए व्याकुल हो रहा हैं और मन में उसके बिना शांति नहीं है।