तुलसीदास जी के अनुसार संत का स्वभाव फलदार आम के वृक्ष की तरह होना चाहिए। आम का वृक्ष दूसरों की भलाई के लिए ही फलता और फूलता है। मनुष्य आम को पाने के लिए पेड़ को पत्थर मारता है, बदले में पेड़ मनुष्य को फल (आम) देता है। उसी प्रकार संतो को चाहिए कि वे लोक निंदा कि परवाह न कर समाज को सुधारने के कार्य में लगे रहें।