प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘तुलसीदास के दोहे’ नामक संग्रह से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं।
संदर्भ : यहाँ तुलसीदास जी कहते हैं कि हम जैसे कर्म करते हैं, हमें वैसा ही फल मिलता है, इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।
स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि हमारा शरीर खेत है और हमारा मन किसान है। पाप और पुण्य ये दो प्रकार के बीज हैं। अब हम इनमें से जो बीज बोएँगे, हमें वैसा ही फल मिलेगा।
अतः अच्छा या बुरा फल पाना हमारे ही हाथ में है।