तुलसीदास जी कह रहे हैं कि संत पुरुष उस आम के वृक्ष की भाँति होते हैं। जो आम का वृक्ष दूसरों का उपकार करने के लिए ही फलता-फूलता है। लोग धरती से उसकी ओर पत्थर फेंकते हैं, तो वह आम का फल उन्हें प्रदान करता है। उसी प्रकार संतों का चाहे जितना ही अपमान क्यों न किया जाय, पर वे हम लोगों का उपकार ही करते हैं।