दोहे का भावार्थ लिखें:
तुलसी कबहुँ न त्यागिए, अपने कुल की रीति। लायक ही सो कीजिए, ब्याह, बैर अरु प्रीति ॥९॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अपने कुल की रीति को या परंपरा को कभी भी त्यागना नहीं चाहिए। कहा गया है कि जो योग्य हो अथवा लायक हो उसी से विवाह रचाया जाना चाहिए। बैर भी सोच-समझ कर जो उसके लायक हो उसी से करना चाहिए तथा लायक से ही प्रीति करनी चाहिए।