मीराबाई का मानना है कि इस संसार में जो आता है, वह मोह-माया के बन्धन में फँस जाता है और वह ऐसी स्थिति में ईश्वर को नहीं पा सकता। इतना ही नहीं, उसे मुक्ति या मोक्ष भी मिलना कठिन हो जाता है। इस आकाश और भूमि के बीच दिखाई पड़नेवाला सब नष्ट होनेवाला है। तीर्थयात्रा, वृत, ज्ञान की बातें, और काशी में करवट लेने की बात झूठी और आडंबर मात्र है। शरीर का घमण्ड नहीं करना है। यदि ईश्वर को पाना है और मोक्ष पाना है, तो संसार के बन्धनों से छुटकारा पाना अति आवश्यक है। इसलिए मीराबाई इस सांसारिक बन्धन से मुक्ति चाहती है।