सीता जब वनवास जाने के लिए राजभवन छोड़कर श्रीराम और लक्ष्मण सहित वन में कुटिया बसाती है, वहाँ उसका काम करने के लिए कोई दासी नहीं होती। वह स्वयं पसीना बहाकर सारे गृह कार्य जैसे भोजन बनाना, कुटिया की सफाई, पानी लाना आदी करती है जिससे उसका ‘आत्म स्थैर्य बड़ता है और दूसरों पर निर्भर होने की आदत छूट जाती है। कुटिया में आकर उसे घर और परिवार के महत्व का पता चलता है।