ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती हूँ, अपने पैरों पर खड़ी आप चलती हूँ, श्रमवारि-बिन्दु फल स्वास्थ्य-शुक्ति फलती हूँ अपने अचल से व्यंजन आप झलती हूँ।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं।संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में सीता जी खुद फल-फूल लाकर उनसे खाना पकाती हैं सुखी और स्वस्थ जीवन का आनंद उठाती है।स्पष्टीकरण : उक्त पंक्तियों में सीता जी अपने स्वावलंबन के बारे में कह रही हैं कि मैं यहाँ अपने पैरों पर खड़ी हूँ, दूसरों पर निर्भर नहीं हूँ। मेरे शरीर का वास्तविक आनंद तो परिश्रम से ही प्राप्त होता है। अपने हाथों से हवा स्वयं झलती हूँ।