ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
कहता है कौन कि भाग्य ठगा है मेरा? वह सुना हुआ भय दूर भगा है मेरा। कुंछ करने में अब हाथ लगा है मेरा, वन में ही तो गार्हस्थ्य जगा है मेरा।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं।संदर्भ : जब सीता जी प्रभु रामचन्द्र के साथ वन में कुटिया बनाकर रहती है, वन में एक साधारण नारी की तरह अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाने का सौभाग्य पाती हैं।स्पष्टीकरण : गृहस्थ जीवन का आनंद वन में अनुभव करते हुए सीता जी कहती हैं कि कौन कहता है कि हमारा भाग्य ठगा गया है? वास्तव में यहाँ हमारा भय मिट गया है। यहाँ रहकर कुछ न कुछ करने में मन लगता है। ऐसा लग रहा है कि वन में ही गृहस्थ जाग गया है।