एक साधनहीन और असहाय नारी इलाहाबाद के पथ पर बैठकर पत्थर तोड़ रही है। आसपास कोई छायादार पेड़ नहीं है। धूप चढ़ रही थी। गर्मी के दिन थे। शरीर को झुलसा देनेवाली धूप थी। गर्म हवा और धूल उड़ रही थी। दुपहर का समय था। इसी परिस्थिति में वह नारी पत्थर तोड़ रही थी।