‘तोड़ती पत्थर’ कविता में निरालाजी ने इलाहाबाद की एक सड़क के किनारे पत्थर तोड़ती मजदूर स्त्री का चित्रण किया है। साथ ही एक मजदूरिन जिस परिस्थिति में काम कर रही थी, उसका यथार्थ और मार्मिक चित्रण किया है। स्त्री रुई की तरह तपती धरती और बरसती लू की दुपहरी में पत्थर तोड़ रही है। आसपास कोई छायादार पेड नहीं है। गर्म हवा और धूल उड़ रही है। यहाँ कवि ने उस सांवली सलोनी निर्धन मजदूरिन के कठिन परिश्रम का महत्व प्रकट किया है।