कवि पत्थर तोड़ती स्त्री की दुःखद स्थिति को देखकर सहानुभूति से भर उठते हैं। इलाहाबाद के पथ पर तपती दुपहरी में एक महिला पत्थर तोड़ रही थी। जहाँ वह बैठी थी वहाँ कोई छायादार पेड़ नहीं था। चारों तरफ लू चल रही थी। फिर भी वह परिश्रम किए जा रही थी। निराला जी उसकी इस असहाय स्थिति को देखकर द्रवित हो जाते है।