ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार – सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
प्रसंग : यह पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘तोड़ती पत्थर’ नामक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।संदर्भ : निराला जी इलाहाबाद के पथ पर पत्थर तोड़ती महिला की स्थिति का वर्णन कर रहे हैं।स्पष्टीकरण : गर्मियों की तपती दुपहरी में निराला जी ने एक स्त्री को पत्थर तोड़ते हुए देखा था। उसके हाथ में भारी हथौड़ा था और वह उससे पत्थर पर बार-बार चोट का रही थीं। वह पत्थर तोड़ रही थी। जहाँ वह बैठी थी वहाँ कोई छायादार पेड़ भी नहीं था लेकिन उसके सामने एक विशाल भवन था जिसमें पंक्तियों में पेड़ लगे थे। निराला कहना चाहते हैं कि गरीबों को सुख नसीब नहीं है। सुख धनी लोगों के पास है। वे साधन संपन्न है। समाज में विषमता व्याप्त है।विशेष : छायावादी प्रगतिशील कविता। अर्थ-वैषम्य पर प्रकाश डालती है। मुक्त छंद का प्रयोग।